Monday, December 31, 2012
एक वो रात ऐसी थी..
रुख्सार पर भी उसके मुस्कुराहटें थीं खेलती
हुजूम-ए-अश्क़ से तर दामन था एक वो रात ऐसी थी ।
चिराग-ए-मुर्दा था वहाँ इन्सानियत का अक्स
रोशनी भी थी शर्मसार एक वो रात ऐसी थी ।
एक बेजान होती चीख़ और वो आह-ए-आतशी
आबरू थी बेहिजाब एक वो रात ऐसी थी ।
बेपरवाह था शहर औ नुक्कड़ों पे कानून के वो बुत
बने सब बेहया तमाशबीं एक वो रात ऐसी थी ।
चन्द एक हंगामों से सही हम ज़मीर के हमज़बाँ हुए
धधकती अब तलक है आग एक वो रात ऐसी थी ।
बाद-ए-मर्ग के भी पाँव कफ़न में है हिल रहा
फ़रिश्ते भी थे कश्मकश में एक वो रात ऐसी थी।
करो एक पल तो एहसास वो ख़लिश-ए-ख़ार ऐ अहले वतन
हमसे ही कुछ रुख्सत हुआ एक वो रात ऐसी थी ।
Monday, October 22, 2012
डरता हूँ मैं..
वो हँसी वो शरारतें तेरा वो संजीदापन
तेरा साया भी मुझसे दूर हो तो डरता हूँ मैं ।तेरे एहसास मेरे तहरीर में यूँ रवाँ-गवाँ हैं
तू जो ख़ामोश हो पल भर को तो डरता हूँ मैं ।
लाख हमदर्द मेरे ग़म को कहीं बाँट भी लें ग़र
न हो हाथों में तेरा हाथ तो डरता हूँ मैं ।
मेरे ख़्वाबों में तेरे साथ तमाम ज़िन्दगी जियूँ
पर तेरी आहट को भी हूँ महरूम तो डरता हूँ मैं ।
मेरी रूह को सर-बसर है तेरे उल्फ़त की आरज़ू
मयस्सर और को है ये सोच के डरता हूँ मैं ।
मेरे पहलूनशीं होकर तू जब हाल-ए-दिल कहती है
बेरहम पल वो जब गुज़रे तो डरता हूँ मैं ।
बेबस मेरी निगाहों को है तेरे विसाल की हसरत
तू आकर भी चली जाए तो डरता हूँ मैं ।
Saturday, September 22, 2012
कल्पना ..
सदियों से एक प्रश्नवाचक दृष्टि
उस असीमित नीले अम्बर पर ,
सूरज के ओज से प्रकाशित
द्युति की गर्जना से भी
स्थिर-श्रांत ,
कहने को है स्पष्ट पटल
पर फिर भी मन को
कचोटता है कुछ ,
कि इन बादलों के आगे क्या ?
कभी है कपोल-कल्पना मात्र
क्षण भर में अटल सत्य का आभाष ,
कभी सोचूँ तो वहाँ
भावों का सागर विद्यमान ,
क्षण भर में हो शून्यता का भान,
कभी सोचूँ तो वहाँ दैवीय-शक्तियों का निवास
क्षण भर में लगे निरा मनुष्यों का वास ,
परन्तु वह काल्पनिक जगत भले हो
मिथ्या -मात्र ,
फिर भी उसी काल्पनिकता में
डूबने-उतराने की चाह है,
इस 'तथाकथित सत्यता' से
मन आहत है ,
उस मिथ्या- प्रवाह में सतत
बहने की चाह है ।
Wednesday, September 19, 2012
Love Goes Wordless...
The chaos
pales into the insignificance
all worldly desires
seem to be mere a pittance
A tender touch
bestows a solace
When love goes wordless..
A disposition slithers
to a heart
Afew shadows tribulate
and things get drifted apartA vague starts taking a shape
When love goes wordless..
Everything else plunges
into the dearth
Dreams start finding
a reason of mirth
Pangs and pleasures
are there to embrace
When love goes wordless..
I get captivated
with the gentle charm
Feelings are dormant and unborn
What I keep craving for
nothing but that glistening face
When love goes wordless...
Sunday, August 19, 2012
A Tormentor...
On the agonized path of
my deserted life
a lurching stride
took me to a poignancy
where I coaxed to my pains
but they rebuffed
they wanted me to be
with the same somber nights
and a false aura of love,
Where those pipe dreams
were there to ravage
my soul,
with all the despondence
I just kept on
strolling,
lightening bolts continued
to flash across the sky,
accidentally I witnessed
a distraught cloud
that was torn asunder,
gulping sobs of grief
I still went on
crooning
with the same
nagging pain,
and a tattered heart
of mine.
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Thursday, August 02, 2012
प्रेम...
ये कैसी उत्कंठा
ये कैसी व्याकुलता
मन में उद्भव
जीवन में प्रवाहित,
सुमधुर रागों का अलाप
जिसे डुबो जाए ,
मात्र मिथ्या प्रलाप
जिसे सिक्त न करे,
क्षण-भर में संचारित हो
पौरुष अपार
दो घडी में फिर पसरा
विचित्र भय का संसार,
कभी अनुभूति
कि वांछित सागर पास है
कभी मानो तो
फिर से एक मरीचिका का भ्रम,
अनेकों प्रश्न अनगिनत द्वंद्व हैं
प्रतिक्षण इस मन में,
कभी सर्वज्ञ की अनुभूति
और पूर्ण संत्रिप्तता है जीवन में,
आशाएँ जगें निराधार
पग-पग पर,
मन-मष्तिष्क पर उन्ही
भावों का अधिग्रहण है,
तार्किकता से मन विमुख है
इस स्वपरिभाषित काल्पनिकता में
कहीं दूर बह जाने की चाह है,
परिणामों की परवाह कहाँ
बस वो अग्निपरीक्षा देने की
एक दबी सी आस है ।
Saturday, July 28, 2012
रिश्ता..
कुछ भावों को मूर्त रूप दिया तो
एक आकृति सी उभरी
बहुत सोचा तो अन्ततः
नाम दिया उसे 'रिश्ता' ,
एक-दूसरे से अनभिज्ञ
क्षण भर पहले मीलों की दूरियाँ ,
सहसा कुछ खटका,
ह्रदय के द्वार पर
देखा तो उन्हीं भावों की दस्तक थी,
मष्तिष्क में उठा ज्वार-भाटा
अन्तर में एक विचित्र विश्वास भरा सन्नाटा,
कि यही तो है वो 'रिश्ता' ,
कभी किसी मोड़ पर शिकवे
तो कभी दुहाई इसमें डूबने-उतराने की,
तिरते हैं आजीवन
जिस निस्सीम आकाश पर
वही तो है ये पवित्र 'रिश्ता' ,
वाचालता से अपरिभाषित
चुप्पी में ही अपार निश्चलता,
मनोवेगों पर नियंत्रण नहीं
उन सभी सीमाओं का
अतिक्रमण है ये 'रिश्ता',
क्यों ये अल्हड़ मन
इसमें ही विलीन होने को है ,
क्यों ये सारा जीवन
इसी का निमित्त लगे,
एक उँगली का सहारा
और डगर अन्तहीन ,
पथप्रदर्शक बनकर ढाढ़स बँधाता
पग-पग पर एक अदृश्य संगी,
सब ने कहा निरा भ्रम,
पर यही तो है मेरा साये से
वो विचित्र सा 'रिश्ता'...
Tuesday, July 17, 2012
बादलों के पार ...
हर रोज़ चादरों में कहीं खोकर
नींद के दरवाजों पर दस्तक देता हूँ
तो एक चिर-परिचित ध्वनि गूँजती है
आश्रय चाहिए ...????
मेरी चुप्पी में ही मेरी स्वीकारोक्ति होती है
ख़ैर, कुछ तो चिर-स्थायी है,
फिर क्या...
उसी आश्रय के आलिंगनबद्ध होकर
एक नया रास्ता ढूँढ़ता हूँ
बादलों तक का,
फिर चलता हूँ उसी आस में
फिर वापस होता हूँ
उसी बोझिल मन से,
पर अब लोग कहते हैं
ये कदम शिथिल हो चले हैं
अब इनमें वो धार नहीं
मीलों निर्बाध चलने का,
मैं भी शायद नतमस्तक हूँ
इस अक्षमता के सम्मुख,
सच तो है
अब ये पथ जो मेरे अपने थे
निर्जन हो चले हैं ,
कहते हैं , अब लोग
बादलों के पार जाने लगे हैं
किन्हीं नए रास्तों से
कृत्रिम पाँवों से ...... ।
Monday, May 28, 2012
इश्क़-ए -हकीकी ..
उस चाँद के मानिंद रोशन कोई कहाँ
आसमां के दामन में यूँ चराग बहुत हैं
उन साँसों के तपिश की तासीर और है
कहने को जहाँ में यूँ तो आग बहुत है
एक घूँट के सुरूर में कुछ बात है साकी
तेरे मैकदे में यूँ तो शराब बहुत है
चन्द एक सबक का ये खेल ज़िन्दगी
पढने को यूँ तो वैसे किताब बहुत हैं
मेरे जीने का सबब ये तसव्वुर तेरे हैं
बुनने को यूँ तो नींद में ख्वाब बहुत हैं
हर एक मेरे सवाल का अंजाम अब तू है
पाने को मेरे पास यूँ जवाब बहुत हैं ।
Saturday, May 19, 2012
a firefly...
a firefly
instills a life within a few wombs
enlivening some souls
dying in the dark
patting a few sobbing hearts
rejuvenating some weary strides
a firefly keeps glittering on.
vanishing some scars on psyche
making forget all those pangs
freeing from some fetters
burning somewhere within
illuminating the vibes yet
a firefly keeps glittering on
quenching the thirst of pursuing fellows
stimulating a few latent desires
measuring the limitless depth of gloom
a firefly keeps glittering on
embracing all the compassions
imbibing all the sorrows
sprouting some brand new hopes
a firefly keeps glittering on.
Sunday, May 13, 2012
अर्ज़ी..
शोहरतों के बाज़ार से मुझे मेरे हिस्से का नाम दे
ताउम्र मेरे साथ हो मुझे एक अज़ीम इनाम दे
ज़मींदोज मेरा अक्स हो मुझको न झूटी शान दे
सबसे रहूँ महरूम पर मुझे ग़ैरत औ ईमान दे
ख़ुशी की सुबह जो बक्श दे मुझे ग़म की भी वो शाम दे
कुछ पलों में जीना सीख लूँ मुझे उम्र न तू तमाम दे
मेरे हसरतों का हिसाब रख मुझे सुकूँ औ इत्मीनान दे
मुझे अपनी गोद में सुला के तू मेरे रूह को अब क़याम दे
ताउम्र मेरे साथ हो मुझे एक अज़ीम इनाम दे
ज़मींदोज मेरा अक्स हो मुझको न झूटी शान दे
सबसे रहूँ महरूम पर मुझे ग़ैरत औ ईमान दे
ख़ुशी की सुबह जो बक्श दे मुझे ग़म की भी वो शाम दे
कुछ पलों में जीना सीख लूँ मुझे उम्र न तू तमाम दे
फिरता रहा हूँ दर-बदर मेरे क़दमों को अब आराम दे
एक राह मुझे दिखा के तू मेरे जुस्तजू को अंजाम देमेरे हसरतों का हिसाब रख मुझे सुकूँ औ इत्मीनान दे
मुझे अपनी गोद में सुला के तू मेरे रूह को अब क़याम दे
Saturday, April 28, 2012
आत्मगीत..
This song was sung 3.5 years back in November, 2008.
when I was in college and this video was all made by
one of my dearest friends 'Prashant'.
किशोर दा के इस प्यारे और मर्मस्पर्शी गीत को गाने का मैंने
एक तुच्छ प्रयास किया है । आशा है आप त्रुटियों को क्षमा करते
हुए मेरे प्रयास को अपना अमूल्य समय देंगे ।
Monday, April 23, 2012
आत्मगीत..
पहली बार अपनी आवाज़ को आपलोगों के सामने रख रहा हूँ ।
रफ़ी साब के एक गीत को जो मुझे बहुत प्रिय है गाने की कोशिश की है मैंने, उम्मीद है आप सुनेंगे ।
your reactions are always welcome..
Friday, April 20, 2012
The CAGED..
The Caged,
though it doesn't make any sense
yet
in my ignorant vision
it seems like snarled,
because I am lacking
the eyes to catch that
divine glimpse of it,
Forsaking all the shackles,
getting out of all the fetters,
proving all the materialism
mere an evanescence,
enlightening our dimming lamps,
it just vanishes into
the empire of infinity,
It just looks for
a momentary abode
to live in,
when the tenancy gets over,
this abode dissolves into
its basic constituents,
earth,water,air,fire,sky,
subsequently traces its another way,
and keeps on moving
with an eternal quest,
Neither it has any origin
nor does it perishes,
it just remains steadfast forever,
being engaged in
our self made worldly luxuries,
we forget all the hospitality
towards that guest,
even though the creator
stringently assesses us
on the norms of circumstances,
but we fail most of the time
and when
we come to the realization,
it gets over of our hosting time,
and it renounces
not to stay any longer
in this abode,
because it felt like
CAGED,
and it had to leave
for instilling a brand new life
in any immobile womb,
its nothing but
a SOUL,
a divine soul.
Friday, April 13, 2012
आईना..
इन शह-मात के गफलत में तमाम उम्र गुज़ार देते हो,
क्या हो जब यूँ ही खेल का दस्तूर बदल जाए ।
ये दौलत-शोहरत क्यूँ ना दिल को सुकूँ देते हों ,
क्या हो जो ये तन यूँ ही ख़ाक हो जाए ।
जिस आब-ए-हयात से ये इबारत लिखी है तुमने ,
क्या हो जो उस दरिया का रुख यक बदल जाए ।
बदगुमानी है के ये बाग़ तो गुलज़ार है हर शै ,
क्या हो जो यूँ खिज़ा का मिजाज़ फिर जाए ।
कहते हो के एक रात ही काफी है नींद को ,
क्या हो शब्-ए -हिज्र जो यूँ बेबस गुज़र जाए ।
मद्धिम होते दिए को ज़रूरतमंद कौन यहाँ ,
क्या हो जो सहर तक सभी चिराग बुझ जाए ।
जिस चाँद पे इतना तुम्हे गुरुर है हबीब ,
क्या हो जो आफ़ताब यूँ बेज़ार हो जाए ।
अपनों के वास्ते तुम्हे मोहलत नहीं अभी ,
क्या हो जो उनके दीद को आँखें तरस जाए ।
जिस लिबास के आग़ोश में सर-ए -महफ़िल में जाते हो ,
क्या हो जो उस पोशाक में पेबन्द लग जाए ।
हलक को खारे पानी की आदत इस हद तक न लगा ,
क्या हो के अब्र बरसे और प्यासे होंठ रह जाए ।
बेहिस है इस जहाँ से अपने ग़म में डूबकर ,
क्या हो जो गमखार अपनी पीर तुमसे सुना जाए ।
Tuesday, April 10, 2012
सुनहरी सुबह..
नीले आसमान के
एक छोटे से दरीचे से
चाँदनी की अलसाई किरणों का
पसरता साम्राज्य,
जो निशब्दता में भी
छेड़ती एक सुमधुर तान ,
तभी इस तन्द्रा से
जगाया किसी सुरमयी आवाज़ ने
पर आँख खुली तो
सम्मुख वही मीलों पसरा सन्नाटा,
एक बार फिर
स्वयं से छल ,
फिर से वही मरीचिका
जिसके लिए उठता
अंतर में द्वंद्व ,
पर कब तक ?
बुझती ही सही
पर एक आस है
कि उसी मरीचिका से
फूटेंगे सोते ,
जो सिक्त करेंगे
मेरी ऊसर धरा को ,
और
प्रस्फुटित होगा जिसमें
नव अंकुर मेरी आशाओं का
एक नए सूरज के साथ
एक नयी 'सुनहरी सुबह' में ।
Friday, April 06, 2012
प्रेम-धुन..
अज्ञात दिशा की ये
अल्हड़ हवाएँ
उड़ाकर ले आई कुछ सौगात,
जिनमें कुछ आशाओं का पुलिंदा,
कुछ परिवर्तन के संकेत,
कुछ अज्ञात धुनों पर
थिरकता ये मन,
कभी तन-बदन महकाती
ये मदमस्त चंचल पवन,
कुछ अपनों से बढती दूरियाँ
किसी बेगाने से बढ़ता अपनापन,
कुछ अनभिज्ञता कराती
सर्वज्ञ होने की अनुभूति,
कभी अखण्ड सत्यता से
प्रश्न करता ये मन,
कहीं रहकर भी हो अनुपस्थिति
का आभाष ,
कभी स्वयं के अस्तित्व का
भी हो भ्रम,
किसी सतह का भान नहीं
फिर भी डूबते जाने को
व्याकुल है मन,
क्षण-प्रतिक्षण तिरते रहने की
चाह और
छूना कोई अदृश्य दामन,
कभी वर्तमान की सुध नहीं,
भविष्य के गलियारों में
विचरण करता ये मन,
कोई धुंधली सी आकृति तो है
पर अपेक्षित नयनों का अभाव है,
हर पग पर है उहापोह की स्थिति,
यही तो शायद
इस प्रेम-धुन का स्वभाव है ।
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सृजन
Raj Nagar, Ghaziabad
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