अज्ञात दिशा की ये
अल्हड़ हवाएँ
उड़ाकर ले आई कुछ सौगात,
जिनमें कुछ आशाओं का पुलिंदा,
कुछ परिवर्तन के संकेत,
कुछ अज्ञात धुनों पर
थिरकता ये मन,
कभी तन-बदन महकाती
ये मदमस्त चंचल पवन,
कुछ अपनों से बढती दूरियाँ
किसी बेगाने से बढ़ता अपनापन,
कुछ अनभिज्ञता कराती
सर्वज्ञ होने की अनुभूति,
कभी अखण्ड सत्यता से
प्रश्न करता ये मन,
कहीं रहकर भी हो अनुपस्थिति
का आभाष ,
कभी स्वयं के अस्तित्व का
भी हो भ्रम,
किसी सतह का भान नहीं
फिर भी डूबते जाने को
व्याकुल है मन,
क्षण-प्रतिक्षण तिरते रहने की
चाह और
छूना कोई अदृश्य दामन,
कभी वर्तमान की सुध नहीं,
भविष्य के गलियारों में
विचरण करता ये मन,
कोई धुंधली सी आकृति तो है
पर अपेक्षित नयनों का अभाव है,
हर पग पर है उहापोह की स्थिति,
यही तो शायद
इस प्रेम-धुन का स्वभाव है ।
मानवोचित मनोभावों को व्यक्त करती , भावुक अंतर्मन की उपज , अच्छी कविता है|
ReplyDeleteबस इसी प्रकार लिखते रहिये ......
सहृदय धन्यवाद तुम्हारे इन प्रेरक शब्दों के लिए |
Deleteकहीं न कहीं मुझे इस संबल की आवश्यकता सदैव रहेगी ऐसी आशा रखता हूँ तुमसे |
Bahut hi sunder...kavita bhi aur picture bhi.
ReplyDeleteधन्यवाद सीमा जी,
Deleteआपके इन प्रशंसनीय शब्दों के लिए, आगे भी आपसे प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा रखता हूँ |
padhkar mann prafullit ho gaya...
ReplyDeleteaise hi likhte rahe prateek ji
dhanyavaad sneha..:)
Deletekya baat hai Prateek very nice :)
ReplyDeletethank u so much again himani ma'am..:)
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