Saturday, March 08, 2014

'औरत'




कभी रग़-ए-ख़ून 
कभी क़तरा-ए-अश्क 
कभी मुस्कुराहटों की हसीं तासीर है 'औरत'

कभी हिजाबों की रौनक़ 
कभी हया की शोख़ी 
कभी ज़लज़लों से दो-चार होती शमशीर है 'औरत'

कभी जद्दोज़हद की आँधी 
कभी समन्दरों का सुकून 
कभी सियाह अब्रों पे खिंचती चाँदी की लकीर है 'औरत'

कभी बादा-ए-इश्क़ 
कभी नग़मा-ए-वफ़ा 
कभी ग़ज़लों की बेइंतहाँ पीर है 'औरत'

कभी रानाई कुदरत की 
कभी रोशनी चिरागों की 
कभी तर्जुमों से परे होती बेनज़ीर है 'औरत'

कभी आबरू की मिसाल 
कभी तहज़ीबों का आईना 
कभी मुर्दा इन्सानियत को जगा दे वो ज़मीर है 'औरत' 

कभी ख़लाओं की हसरत 
कभी दुआओं का करिश्मा 
कभी मुफ़लिसी में साथ देती कोई हीर है 'औरत'

कभी कुछ अनकहे मिसरे 
कभी दम भरते अशार 
कभी शायरों के दिलों में धड़कती तहरीर है 'औरत'