रातें कुछ ऐसी हों कि
नींदें मेरी और
ख़्वाब तुम्हारे हों,
दिन कुछ ऐसे हों कि
हर तरफ बस तेरे ही नज़ारें हों,
हर एक पल तेरी सूरत हो
आँखों में चाँद के मानिंद
और आँचल में बिखरे हज़ारों सितारे हों,
तेरे लफ़्ज़ों में हो तरन्नुम का सा एहसास
जो तू हँस दे तो बिन बादल ही बरसी फुहारें हों |
मैंने भी कुछ ऐसे ख्वाब देखे हैं
ReplyDeleteइनका पूरा होना
नामुमकिन नहीं
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बस हम वो,वो हम हो जाएँ
बस इतना हो जाये
हम दो बदन एक जान हो जाएँ
तो ऐसा भी मुमकिन है .....
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पर क्या मिलेगा मन का मीत??