ये मेरी धूमिल होती रेखाएँ
ये टूटती और जुड़ती आशाएँ
अब दम तोड़ रही हैं
शायद इस घुटन का अंत अब सन्निकट है,
शायद,
प्राणवायु इससे छिन सी गयी है,
अब तो कुछ शब्द भी विकृत हो चले हैं
अब बदल रही हैं कुछ परिभाषाएँ
ये मेरी धूमिल होती रेखाएँ..
सुदूर किसी बंजर के जर्जर होते
घरौदों में
कुछ किरणों की आस संजोया था कभी
सूरज की आभा भी रुष्ट है अब इनसे,
थके-हारे क़दमों से
ये असीमित दूरियां नापता मैं
और,
ह्रदय के किन्हीं कोनों से उठती ये
आत्मीय संवेदनाएँ,
अतीत का अधिकार मेरे वर्तमान पर
इस विमूढ़ मन की
मृतप्राय सी होती आकांक्षाएँ,
ये मेरी धूमिल होती रेखाएँ..
उन दो टूक शब्दों की विचित्र सी
वो लालसा,
दो घड़ी में पूरा जीवन जी लेने का
वो अभीष्ट,
वो पत्तों के सरसराने मात्र से
चक्रवातों का सा संशय,
अश्रुधाराओं में डूबता-उतराता मैं
बस तुमको ही सुनता फिर,
मूक बन जाता,
किसी छद्म आश्रय पर फलती-फूलती
कुछ चंचल अमर-लताएं,
ये मेरी धूमिल होती रेखाएँ..
अब ये राहें दौड़ती हैं
मैं एकटक इन्हें निहारता रह जाता हूँ,
सब मेरे होने का आभाष कराते हैं
पर मैं स्वयं को ढूंढता रह जाता हूँ,
स्वविचारों से ही विद्रोह करती ये मेरी
नीरस होती कविताएँ,
ये मेरी और पूर्णतया मेरी अपनी
धूमिल होती रेखाएँ..
इन धूमिल होती रेखाओं में
ReplyDeleteरेखाओं के होने का अस्तित्व है
टूटती जुडती आशाओं में
आशाओं का समावेश है
छिनती प्राणवायु भी
प्राणवायु के होने का प्रमाण है
विकृत होते शब्द भी
कराते है एहसास
उन शब्दों के प्रवाह का
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घरौदो से रुष्ट होती
सूरज की किरणे
शशि के आगमन का
मधुर सन्देश सुनती,
असीमित दूरियां नापते कदम
थके कदम नहीं
वो तो रुके कदम है
जो है चलने को आतुर
बस लेने दो तनिक विश्राम ,
ह्रदय के कोने से उठती संवेदनाये
कराती है एहसास पर्वेदना का,
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वर्तमान पर अतीत का अधिकार
रखता भविष्य का शसक्त नीव
मन की मृत होती आकाछायें
बनाती है निर्वेद,पारलौकिक
.....................................
दो घडी में संपूर्ण जीवन
क्यों है जीने का ऐसा अभीस्ट?
पत्तो के सरसराहट मात्र से
चक्रवात का संसय ...
देता है सजगता का प्रमाण ;
आश्रय छदम ही सही
पर आश्रय तो है
फलती-फूलती अमर लताओं में
अस्तित्व है उस जीवन रेखा का
जो धूमिल होते हुए भी
अपने होने का बोध कराती है ;
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दौड़ती राहें,निहारती पलकें
स्वयं के होने का आभास
खुद को पाने की लालसा
विचारो का विद्रोह
कवियों की कल्पना
ये सब आत्ममंथन है
स्वयं का परिमार्जन है
परिस्कार है निजत्व का
ये विचार पूर्णतया आपके
अपने है
ये धूमिल होती रेखा नहीं
आपकी विचार रेख है .......