आज राह चलते
यूँ ही एक पत्ते को
निरुद्देश्य सा तिरता पाया,
सुना है कि,
पिछले दिनों के
थपेड़ों को वो
अब तक भुला नहीं सका है,
कहते हैं
उन दिनों इसकी रंगत में
एक विचित्र सी चमक थी
जब सूरज कि रोशनी
इसे छूकर
फिर धरती पर पड़ती थी ,
अचानक
वो चमक धूमिल होने लगी
पत्ता अब मलिन हो चला है
सुना है
कि रोशनी ने अब
अपना रास्ता बदल लिया है,
तब से हर एक झोंके से आसरा
मांगता है ये पत्ता,
पर अब तो हवा भी
बँट गयी सी लगती है,
कहीं सुकून तो कहीं त्राहि
देकर जाती है,
प्रकृति भी मौन है
सब देखती रह जाती है,
तभी बर्बस ही
पत्ते कि तन्द्रा टूटी
आशा की एक लौ की गरमाहट से
किसी ने अँधेरे
इन रास्तों पर
एक दिया जो जला दिया था,
वो भी उठ खड़ा हुआ
किसी ने उसके सर पर
हाथ फेरा, पुचकारा
सारे गर्द-ग़ुबार पोंछकर
डायरी के पृष्ठों में
कहीं दबा दिया
बड़े प्यार से,
पत्ते की आँख भर आई
सोचा,
वो टहनी तो अब बहुत दूर है
जहां प्यार लेने-देने के
सपने बुने थे,
पर प्यार का ये आसरा
इन पृष्ठों में
बड़ा सुकून देता है ।
Its really touching and lovable..... great work carry on!!!!!!!
ReplyDeleteThank u so much bhaiya..for these kind words..:)
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