सेहरा हो ग़ुलशन हो
सितारों का बज़्म हो
दूर ख़यालातों से परे कहीं एक रिश्ता तो पले
कोई बात अब चले,
एक आस कभी टूटे
कोई पास होकर रूठे
कश्मकश में उलझे धागों का कोई छोर तो मिले
कोई बात अब चले,
न सोज़-ए-दिल से धुआँ उठे
न अरमाँ बेबस जले
तबीब बनकर चाक जिगर के कोई अब तो सिले
कोई बात अब चले,
ख़िज़ा का वार ख़ाली हो
दुआ देता हुआ वो माली हो
चमन में आरज़ूओं के कोई फूल तो खिले
कोई बात अब चले ।